सुबह में स्कूल जाने वक्त धूप का नहीं रहता असर, लौटते समय झेलनी पड़ती है गर्मी की मार
बच्चे बोले कि थोड़ा पहले छुट्टी हो जाती तो अच्छा होता
परिषदीय स्कूलों के बच्चों का एक अलग ही दर्द
अजित कुमार यादव
तहसील प्रभारी पडरौना
, कुशीनगर। तापमान दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। सूरज की किरणें भी असहनीय हो गई हैं। गर्मी से धरती ही नहीं शरीर भी धधकने लगा है। सुबह में आठ बजे से लू चलने लग रही है। दिन में दस बजे के बाद धूप असहनीय साबित होने लग रही है। थोड़ी दूर पैदल चलने पर प्यास महसूस होने लग रही है। ऐसे मौसम में सबसे ज्यादा परेशानी स्कूल की छुट्टी होने के बाद दोपहर में घर लौटने वाले बच्चों को हो रही है। उनके चेहरे लाल हो जा रहे हैं और शरीर गरम। उनकी बोतल का पानी भी गरम हो जा रहा है।
जिले में विद्यालय मॉर्निंग होने से बच्चे सुबह में आराम से स्कूल चले जा रहे हैं लेकिन 12:30 बजे छुट्टी होने के बाद जब वह अपने घर लौटते हैं तो उन्हें काफी परेशानी होती है। खासकर पैदल जाने वाले बच्चों के शरीर पर सूर्य की सीधी किरण पड़ती है।
गुरुवार को जब विद्यालयों की छुट्टी हुई तो कुछ बच्चे स्कूल वैन से तो कुछ पैदल घर की ओर रवाना होने लगे। उनके चेहरे गर्मी से लाल हो रहे थे। वह रुमाल, टोपी व छतरी से सिर पर लगने वाली धूप से बचने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। पैदल चलने पर गला सूखने लगा था। वह इधर-उधर पानी की तलाश कर रहे थे। कुछ बच्चे तो पेड़ की छांव में बैठ गए। इधर, वाहन से घर जाने वाले छात्रों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। विद्यालय की मैजिक, ऑटो, बस की छत गरम थी। नीचे में उसकी ताप बच्चों को परेशान कर रही थी। वह कभी खड़ा होते, तो कभी खिड़की शीशा खिसकाते। बच्चे यह कहते सुने गए कि ड्राइवर अंकल गर्मी हो रही है, जल्दी घर छोड़िए। कई बच्चों के अभिभावक उन्हें घर ले जाने के लिए स्कूल में पहुंचे थे। नन्हे बच्चे बैग संभाले या फिर तीखी धूप के बीच धाह मारती सड़क से घर लौटे।
दस बजे लू पकड़ रही रफ्तार, बच्चे खा रहे थपेड़े
स्कूल पर अपने बच्चों को लेने पहुंचे अभिभावको ने बताया कि हमलोग बाइक से अपने बच्चों को घर ले जाने के लिए खड़े हैं। दस मिनट बाद विद्यालय की छुट्टी होगी। गर्मी तो इतनी पड़ रही है कि खड़ा होकर 10 मिनट का समय काटना काफी मुश्किल हो रहा है। ऐसे में जब स्कूल की छुट्टी होगी और बच्चे घर के लिए निकलेंगे तो उनकी क्या स्थिति होगी, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। दस बजे लू की रफ्तार तेज हो जा रही है। स्कूल की छुट्टी इसके बाद हो रही है। ऐसे में बच्चे तीखी धूप व लू का थपेड़ा सहन करते घर पहुंचेंगे तो उनका चेहरा लाल होगा ही। तबीयत भी खराब हो सकती है। ऐसे में चिंता बनी रहती है। इसलिए हमलोग बच्चों को लेने स्कूल आ गये हैं।
छतरी व तौलिया लेकर पहुंचे अभिभावक
निजी विद्यालयों में कुछ बच्चे तो स्कूली वाहन से घर चले जाते हैं, लेकिन कुछ बच्चों के अभिभावक उन्हें छुट्टी के बाद लेने आते हैं। ऐसे में अभिभावक घर से निकलते वक्त अपने साथ छाता एवं तौलिया ले लेते हैं। महिला अभिभावकों सुषमा देवी, रंजना देवी व अनीता देवी का कहना था कि बच्चों को घर से निकलते वक्त सिर पर टोपी, पानी की बोतल आदि दे देते हैं। लेकिन, बच्चे भी टोपी लगाने के बजाय बैग में ही रख घर आ जाते हैं। बोतल का पानी गरम हो जाता है। इसलिए वह खुद उनके लिए छतरी व तौलिया लेकर साथ में ले जाने के लिए आई हैं।
बोतल का पानी हो जा रहा गरम, कैसे बुझाएं प्यास
परिषदीय विद्यालय की छुट्टी होने पर बच्चों की झुंड इधर-उधर पानी की तलाश कर रहा था। छात्रों दीपक, नीतेश व प्रेम ने बताया कि बोतल का पानी गरम हो गया है। प्यास लगी है। ठंडा पानी पीने की इच्छा है,लेकिन, इधर कहीं नल नहीं दिख रहा है। पूछने पर नीतेश ने कहा कि बोतल का पानी गरम हो गया है। इससे प्यास कैसे बुझेगी?
वही प्राथमिक स्कूलों के बच्चों का एक अलग ही दर्द था कि हमारे पास तो बोतल भी नही है और न हम सबके अभिभावक छोड़ने आते हैं और न हमे ले जाने ही आते हैं, क्योंकि हम सभी सरकारी विद्यालय में पढ़ते हैं, प्राइवेट विद्यालय में पढ़ने वालों के अभिभावक अपने बच्चो को छोड़ते हैं और ले जाते हैं। हम तो खुद ही अपने पैरों से आते व जाते हैं, रास्ते मे कही पेड़ की छांव में आराम करते करते जाते हैं, गर्मी बड़ी पड़ रही हैं। थोड़ा पहले छुट्टी हो जाती तो अच्छा रहता……