मिर्ज़ापुर से आत्मप्रसाद त्रिपाठी की रिपोर्ट
मेरे जनक,मेरे आदर्श,मेरे प्रेरणा श्रोत प्रातः स्मरणीय पिताजी 4जुलाई 2004को हम सब को छोड़ महायात्रा पर निकल
गए।कभी न लौटने के लिए।
आज उनके साथ बीते एक एक पल स्मृति पटल पर दस्तक दे रहे हैं। कहां से शुरू करूं निष्काम कर्मयोगी जैसी जिंदगी जीने वाले उन पिताजी की जिनके जीवन का एक पृष्ठ उन्होंने गुप्त रखा था,वह पृष्ठ हम सब के सामने तब आया जब उनके भव्य अवकाश ग्रहण समारोह में नार्दर्न रेलवे मेंस यूनियन द्वारा उनको दिया गया सम्मान पत्र देखा ।जिसमें उल्लिखित था कि आप अपने बाल्यकाल में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बिहार की राजधानी पटना स्थित गवर्नर कोठी पर राजबंदी छोड़े जाएं आंदोलन में धरना पर बैठे थे।वह आजादी के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे शील भद्रया शर्मा उर्फ लड्डू शर्मा जी के साथ ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ होने वाले आंदोलन के हिस्सा रहे।
जब यह राज हम सभी को मालूम हुआ तब परिवार के अन्य सदस्यों पर क्या प्रतिक्रिया हुई मैं नहीं जानता लेकिन मेरे हृदय मे उनके प्रति श्रद्धा लाख गुना बढ़ गयी।जब हम इंटरमीडिएट के छात्र थे तब मैंने पिताजी से पूछा था कि आपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का प्रमाण पत्र क्यों नहीं बनवाया? उनका जबाब मुझे आज भी अक्षरशः याद है -मैने किसी अपेक्षा से अंग्रेजी सरकार की खिलाफत नहीं की थी।तुम लोगों को जीवन पथ पर अपनी प्रतिभा से जो बनना हो बनो ।यह अपेक्षा न करो कि मैं तुम लोगों को सुविधा दिलाने के लिए देश के प्रति अपने तुच्छ प्रयास का देश से प्रतिफल पाने के लिए स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र बनवाऊं और लाभ लूं।
इस प्रसंग की चर्चा इसलिए कि दुर्व्यवस्था और अन्याय के खिलाफ संघर्ष का संस्कार मुझे प्रातः स्मरणीय पिताजी से ही प्राप्त हुआ। 1974की रेल हड़ताल के समय मैं कक्षा 6का छात्र था। तत्कालीन कांग्रेस सरकार की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने रेल हड़ताल को कुचलने के लिए नार्दर्न रेलवे मेंस यूनियन के शीर्ष नेतृत्व को हड़ताल की घोषित तिथि 8मई 1974से पहले ही गिरफ्तार कर जेल में डालने का फैसला किया और पिताजी को 2मई 1974को ही गिरफ्तार कर लिया गया। पूरा परिवार पटना जिले के पैतृक आवास पर रहता था,चुनार रेलवे कालोनी के आवास संख्या 25बी में हम पिताजी के साथ रहते थे। गिरफ्तारी के लिए चुनार थाने के तत्कालीन कोतवाल श्री प्रहलाद मिश्रा पूरे दल बल के साथ आए थे। मैंने उस समय पिताजी और उनके साथ गिरफ्तार जी.एस.राय चाचाजी और दिलीप सिंह चाचाजी को अक्षत रोली से तिलक कर जेल के लिए विदा किया था। कोतवाल श्री मिश्रा ने मुझे गोद में उठा लिया और भावुक स्वर में बोले बेटा परेशान मत होना मैं हूं कोई जरूरत होगी तब बताना। वह लगभग रोज एक बार आकर मेरा हाल चाल लेते थे । पिताजी पर कई गंभीर धाराओं में फर्जी मुकदमे खड़े किए गए थे,वह कई महीने मीरजापुर जेल में रहे।कक्षा 6मे पढ़ने वाला मैं इस उहापोह में था कि माताजी को इस घटनाक्रम की जानकारी दूं या न दूं। लेकिन यह सोचकर की माताजी परेशान होंगी मैंने घर खबर करने का इरादा छोड़ दिया।
गिरफ्तारियों के बाद भी रेल हड़ताल सफल होती देख सरकार ने ड्यूटी करने वाले रेलकर्मियों के लिए लायल कोटे से परिवार के एक सदस्य को नौकरी सहित तमाम सुविधाएं घोषित की और गिरफ्तार यूनियन के शीर्ष नेताओं का आवास खाली कराने का दमनात्मक आदेश जारी किया। व्यवस्था के दमन चक्र का मैं बचपन में ही साक्षी बना। क्वार्टर खाली होने के बाद मजबूरी थी कि पटना जाऊं।घर जाकर कई दिन अंतर्द्वंद्व से लड़ता रहा और अन्ततः माताजी को सारे घटनाक्रम की जानकारी दी।
बहरहाल व्यवस्था के क्रूर चेहरे से मेरा साक्षात्कार बाल्यकाल में ही हुआ संभवतः इसी वजह से व्यवस्था की कुनीतियों के खिलाफ, अन्याय के खिलाफ संघर्ष का, शोषित,जरूरत मंद की मदद का बीजारोपण मेरे मन मस्तिष्क में बाल्यकाल में ही पड़ा।यही वजह थी कि इंटरमीडिएट के दौरान हमने मित्रमंडली के साथ नवयुवक सेवा समिति बनाई और समिति के बैनर तले समाज सेवा का श्री गणेश किया।
जब मैंने पत्रकारिता शुरू की तब समस्या से पीड़ित लोग मेरे संपर्क में आने लगे। पिताजी ने मुझे दो सुझावात्मक आदेश दिए -कोई अपनी समस्या लेकर बड़ी उम्मीद के साथ आता है ,जिस समस्या को टेक अप करो समाधान होने तक कोशिश करो , लोगों की मदद बिना किसी अपेक्षा के करो।
प्रातः स्मरणीय पिताजी से मिले संस्कारों की ताकत से ही मैं हर उस व्यक्ति के साथ खड़ा होता हूं जो व्यवस्था के दमन चक्र और अन्याय का शिकार होता है।
आज मन अशांत भी है, भावुक और मर्माहत भी आज की ही मनहूस तिथि थी जिस तिथि को क्रूर काल ने मेरे सर से मेरे निष्काम कर्मयोगी पिताजी की छाया छीन ली थी। मैं आज जो हूं,जिस मुकाम पर हूं पिताजी से मिले संस्कारों और उनके जीवन से हासिल सीख की वजह से हूं।
देवतुल्य पिताजी की पुण्यतिथि पर उनके श्रीचरणों में शत शत प्रणाम।