Reported By Prakash Acharya
वाराणसी : श्री आदि लाट भैरव रामलीला वरुणा संगम काशी की लीला के तीसरे दिन मार्मिक प्रसंगों का मंचन किया गया। आज वह कारुणिक दिन था, जब कैकेयी ने हठपूर्वक अपने वरदान की आड़ में भरत को अयोध्या का राजा बनाने के साथ ही राम को चौदह वर्ष का कष्टकारी वनवास मांगा। राम के वनवास जाने के स्मरण मात्र से ही राजा दशरथ बेसुध हो गए।
राजा दशरथ का रानी कैकेयी के कक्ष में लंबे संवाद का क्रम चलता रहा, लेकिन कैकेयी की निष्ठुरता के आगे राजा की एक न चली। राजा ने हर प्रकार से रानी के समक्ष राम और भरत के प्रति एक समान प्रेम का बखान किया। कैकेयी स्वनिर्णय पर अडिग रही। राजा दशरथ राम के वनवास जाने की बात से इतने चिंतित हुए की बेसुध होकर अचेत हो गए। यह बात धीरे-धीरे पूरे महल में और फिर अयोध्या में फैल गयी। लीला उस मोड़ पर पहुंची, जहां राम का रामत्व हर कोई प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करता है। वास्तव में राम इसलिए तो जनआस्था के केंद्र हैं। जो राजसुख पाने के लोभ से कोषों दूर तो है ही साथ ही चौदह वर्ष की कठिन वनवास से मन में लेष मात्र भी पीड़ा नहीं हैं। उक्त अवसर पर समिति के व्यास दयाशंकर त्रिपाठी, प्रधानमंत्री कन्हैयालाल यादव, केवल कुशवाहा, गोविंद, रामप्रसाद, धर्मेंद्र शाह, जयप्रकाश राय, शिवम अग्रहरि, चंद्रिका, उत्कर्ष कुशवाहा आदि रहे।
वहीं दूसरे दिन की रामलीला में कैकेयी के कोपभवन जाने के प्रसंग का मंचन किया गया। राजा दशरथ का दर्पण देखना व चौथपन का अनुभव कर राम को युवराज पद देने का निर्णय आदि से लीला का प्रारम्भ हुआ। गुरु वशिष्ट के समक्ष इस विचार का प्रस्ताव व मार्गदर्शन प्राप्त करना। उधर देवताओं में कौतूहल माता सरस्वती से विनती, मां सरस्वती का अयोध्या आगमन कुबरी की बुद्धि फेरना, कुटिल कुबरी के कपटपूर्ण तर्कों से रानी कैकेयी के मन में द्वेष, कैकेयी का हठपूर्वक कोपभवन में वास के प्रसंग का मंचन किया गया। लीला मंचन के दौरान प्रसंगानुसार रामायण के चौपाइयों का गान होता रहा। अंत में भोजन आरती की गयी। व्यास दयाशंकर त्रिपाठी रहे।