यूपी का वाराणसी जिला आरटीओ दफ्तर बना दलालो का अड्डा

आत्मप्रसाद त्रिपाठी की रिपोर्ट

ब्यूरो कार्यालय वाराणसी

दलालों के गिरफ्त में फंसा सभांगीय परिवहन का दफ्तर यानी आरटीओ आफिस दलालों के लिए जन्नत बना हुआ है ! परिवहन विभाग ने भले ही दलालों पर नकेल कसने के लिए कमर कस ली हो लेकिन अब भी सारा काम दलाल ही करता है, चाहे आपको ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना हो ! गाड़ी का रजिस्टेशन कराना हो , या फिर सवारी गाड़ी का फिटनेस परमिट लेना हो !

सब कामों के लिए दलाल तैयार है बस हर काम की उचित फीस उसे मिलनी चाहिए…

वाराणसी के सभांगीय परिवहन कार्यालय से यदि कोई भी व्यक्ति अपना काम सीधे तौर पर करवाने का प्रयास भी करता है तो उसका आवेदन फाइलों में ही दबी रह जाती है ! आवेदक यदि रकम खर्च करने के लिए तैयार है तो मिनटों में दलाल आपका काम चुटकी में कराने के लिए तैयार है ! आप सोंचे कि बिना दलाल या किसी को घूस खिलाये बिना हम अपना काम करवा लेंगे तो यह एक कल्पना है योगी राज में भी

वैसे तो आम सहूलियत के लिए सरकार ने इन सभी कामों के लिए फीस बेहद कम दर की रखी है ! लेकिन हकीकत में 5 से 7 गुना तक कीमत चुकानी पड़ती है! वाराणसी के इस आरटीओ दफ्तर में चपरासी से लेकर बड़े साहब तक इस गोरखधंधे के लिप्त है ! आप आरटीओ के दफ्तर के पास जैसे ही खड़े होंगे वैसे ही दलालों का जमवाड़ा लग जाता है! बातों में ऐसा उलझाया जाता है कि आप खुद सोचने के लिए मजबूर हो जायेंगे कि कौन झंझट में पड़े इसी को दे दो सारा काम आसानी से हो जायेगा !

परिवहन निगम की ओर से लाईसेंस आवदेकों के लिए की गयी एक नई पहले में डाक द्वारा लाईसेंस को आवेदक के घर भेजे जाने की सुविधा दी गयी, इस सुविधा को देने के बाद अधिकारियों का दावा था कि अब कोई भी आवेदक दलालों की गिरफ्त में नही आ पायेगा ! लेकिन हकीकत यह है कि लाईसेंस तो जरूर डाक द्वारा पहुंचेगा लेकिन खेल सारा दलाल ही करेगा! हालकि अब दलालों ने थोड़ी सी इसकी फीस भी बढ़ा दी है ! किसी भी आवेदक को बिना दलाल के लाईसेंस नही मिलेगा !

आवेदक को सीधे मौका तो लाईसेंस बनवाने के लिए मिलता है, लेकिन उसे लिखित परीक्षा में जान बूझकर फेल कर दिया जाता है! जिसके बाद परीक्षा की दोबारा फीस जमा करनी होती है! फिर इस बात की गारंटी नही रहती है कि आवेदक दूसरी बार परीक्षा में पास हो जायेगा! वहीं परीक्षा में फेल होते ही दलाल आवेदक का सिर चाटना शुरू कर देता है कि अलग से पैसे दो तो लाईसेंस बन जायेगा और परीक्षा भी नहीं देनी पड़ेगी ! आवेदक भी सोचता है कि कौन झंझट में पड़े दलाल को पैसे दो और काम कराओ फिर दलाल अपनी कीमत बताता है ! और उसके अतिरिक्त फीस भी लेता है, तब दलाल की ओर से आवेदक को जबाब यह मिलता है कि तीन दिन बात आ जाइयेगा
आवेदक जब तीन दिन बाद अपना लर्निंग लाईसेंस लेने पहुंचता है तो लाईसेंस दलाल की जेब में रहता है जिसे आवेदक को दे दिया जाता है और यहीं से लाईसेेंस को परमानेन्ट कराने की भी फीस तय हो जाती है दोनों एक दूसरे का नम्बर लेते हैं और आवेदक वहां से चलता बनता है ! ड्राइविंग लाईसेंस बनवाने के लिए दलालों का खेल कोई आज का नही है कई सालों से चल रहे इस खेल को परिवहन विभाग खत्म क्या इसे कम भी नहीं कर पाया है!
समय बीतता गया और दलालों की संख्या बढ़ती गयी
आम लोगों को लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया नहीं मालूम थी उधर आरटीओ दफ्तर के अधिकारी भी लाईसेंस आवेदक से सीधे बात नहीं करते है नतीजा यह रहता है कि दलालों का जलवा कायम रहा और बात करते भी कैसे क्योकि सीधे आवेदक से बात करने पर एक फूटी कौड़ी भी अधिकारी को नहीं मिलती है! दलाल से तो कमीशन तय रहता है! हालांकि परिवहन विभाग की ओर से एक आदेश जरूर था कि दफ्तर के बाहर एक बोर्ड लगाया जाये जिसमें सभी प्रकार की फीस और अन्य लगने वाले प्रमाण पत्रों के नाम दर्ज होंगे जिससे आवेदक को आसानी होगी लेकिन इस बोर्ड को आज तक लगाने की आवश्यकता नहीं समझी गयी या लगी भी तो खानापुर्ती का हिस्सा बन कर रह गया ।
योगी जी द्वारा सतत प्रयास भ्रष्टाचार निवारण के लिए किया जा रहा है लेकिन अधिकारियों की बद नियति हमेशा लूटपाट में बनी हुई है जो कानून की कमजोर कड़ी का इस्तेमाल कर नोटों की इमारत खड़ी कर रहे हैं सही मायने में विभागों का बंटवारा सिर्फ वसूली के लिए ही हो रहा है कई ऐसे विभाग है जहां मासिक तनख्वाह जैसी महीने की वसूली जारी है यह कौन सी बीमारी है या सरकार की लाचारी है जनता नहीं समझती कि अधिकारियों द्वारा खून चूसने की कवायद सदियों से जारी है

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